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साल 1880 में, “टेलीग्राफ संदेश” प्राप्त कर ब्रिटिश विदेश सचिव लार्ड पामर्स्टन की आकस्मिक प्रतिक्रिया ऐसी थी मानो “टेलीग्राफ” ने कूटनीति युग का अंत कर दिया हो। हेरोल्ड निकोल्सन के अनुसार उनके जमाने मे लोग टेलीफोन को “डेंजरस लिटिल” पुकारा करते थे। पर 21 वीं सदी आते-आते दुनियाँ बहुत तेजी से एक डिजिटल गांव बनने की ओर अग्रसर हो चली थी| टेलीफोन को जहाँ आम जन के बीच अपनी पैठ बनाने में 75 साल लग गये थे वहीं मोबाइल को विश्व भर में अपने 100 मिलियन उपभोक्ता बनाने में मात्र 16 साल लगे। फेसबुक ने इस मापदंड को मात्र साढ़े चार साल में पूरा कर दिखाया। पर “इंटरनेट” अतिउपयोगी एवं बहुउपयोगी होने के बावजूद अभी भी “पब्लिक डिप्लोमेसी” के आधारभूत संरचना का हिस्सा नहीं बन पाया था।
लेकिन! आगत कोविड-19 ने जीवन के लगभग सभी पहलुओं को स्व-बदलाव के लिये मज़बूर कर दिया। कूटनीति भी कोई अपवाद नहीं रहा। आज, डिजिटल कूटनीति नियत-रीति बन चुका है। हाँ, ये अभी भी पारंपरिक कूटनीति को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता, किन्तु यह लाभदेय-पूरक होने को पूर्णरूपेण क्षमतावान है। “इंटरनेट” की वर्तमान वैश्विक-स्तरीय संरचना भी समयानुकूल है। 3G से जहाँ “सोशल मीडिया नेटवर्क” का विकास और प्रसार संभव हुआ था। वहीं 4G और 5G के आते ही “ऑगमेंटेड रियलिटी” और “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” के माध्यम से उच्च प्रासंगिकता वाले तकनीकी संसाधनों की पूरी श्रृंखला ही उपलब्ध है जो कूटनीतिक गतिविधियों को एक नये स्तर पर ले जा सकती है। विश्व “इंटरनेट” और “सोशल मीडिया” की ताकत से भी परिचित है। हमने देखा है कि कैसे अरब स्प्रिंग आंदोलन के दौरान, मिस्र, ट्यूनीशिया और यमन जैसे देशों में “सोशल मीडिया” सहायकयुक्त सिद्ध हुआ। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने ऑनलाइन मौजूदगी और समझता से नेपाल में भूकंप के दौरान और यमन व लीबिया में पलायन के दौरान एक सार्थक भूमिका निभाई। आज तो युद्ध हो या शांति दोनों में साइबर, ड्रोन और रोबोटिक की तकनीकियों का इस्तेमाल होता है। अमेरिकी विदेश विभाग के पास आज पूर्णकालिक ई-कूटनीति का कार्यालय है। 2019 के डिजिटल श्रेणी चार्ट के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम आदि जैसे देश “सॉफ्ट पावर 30” के ऊपरी पायदान पर हैं। निसंदेह, “पब्लिक डिप्लोमेसी” ने “सॉफ्ट पावर” को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है जिसमें पश्चिमी देशों के विकसित देशों के साथ-साथ विश्व के विकासशील देशों ने भी अपनी विदेश नीति में सॉफ्ट पावर के अंतर्वेशन हेतु सक्रियता दिखाई हैं।
डिजिटल-कूटनीति/ ई-कूटनीति/ साइबर-कूटनीति/ टवाईप्लोमैसी/ कूटनीति 2.0, इंटरनेट और आई.सी.टी की मदद से कूटनीति का संचालन करने के नये आचरण और तरीकों का उपयोग करता है और समकालीन राजनयिक दस्तूरों पर उनके प्रभाव को संदर्भित करता है। कूटनीति जैसे विषयों पर डिजिटल प्रौद्योगिकियों की परिवर्तनकारी क्षमता का आंकलन करते वक़्त और उसके उपयोग को प्रचलन में लाते वक़्त इसके त्वरण और विघटन की तीव्र गति को समझना भी आवश्यक है| इसलिए विश्व मे सरकारों पर यह दबाब रहेगा कि वो तीव्र-परिवर्तनशील डिजिटल प्रौद्योगिकियों की संभावित क्षमताओं को समझने और उसके उचित दोहन हेतु सशक्त सामर्थय विकसित करे। उसे मुख्यधारा में लाने तथा उससे छोटी और लंबी अवधि के विदेश नीति के उद्देश्यपूर्ति के लिये रणनीति तैयार करे। अपने कूटनीतिज्ञ-राजनायक और नवप्रवर्तक की साख को बनाये रखने के लिये और अपने “सॉफ्ट पावर” के उद्देश्यों को बेहतर और ऊंचाइयों पर ले जाने के लिये आवश्यक होगा कि सरकारें किसी तकनीकी रुझान का अनुसरण करने की जगह, “प्रोएक्शन” में दिखे। वैसे भी तकनीकी क्षेत्र में “फर्स्ट मूवर” को अतिरिक्त लाभ संभावित होता है। डिजिटल डिप्लोमेसी का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि अवसर का लाभ उठाने की क्षमता के साथ-साथ इसके संभावित नुकसान के खिलाफ खुद की रक्षा करने की क्षमता को विकसित करने और उसे अंगीकार करने में सरकारें कहाँ तक सफल हो पाती हैं।
कूटनीति जैसे विषयों पर डिजिटल प्रौद्योगिकियों की परिवर्तनकारी क्षमता का आंकलन करते वक़्त और उसके उपयोग को प्रचलन में लाते वक़्त इसके त्वरण और विघटन की तीव्र गति को समझना भी आवश्यक है|
भारत एक महत्वाकांक्षी और व्यवहारमूलक राष्ट्र होने के नाते एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने के अपने सपने को आगे बढ़ाता रहा है। वर्तमान सरकार ने भारतीय कूटनीति को डिजिटल बनाने मे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं| प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारत की समृद्ध “सॉफ्ट पावर” को प्रमुखता से नई ऊंचाइयों तक बढ़ाया है। इस क्षेत्र में उनका विशेष जोर सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों पर रहा है। भारतीय कूटनीति ने तकनीकी परिवर्तनों का हमेशा स्वागत किया है। विभिन्न मंत्रालय और सरकारी अधिकारी कूटनीतिक गतिविधियों को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के बीच साझा करते रहे हैं।
वर्तमान सरकार ने भारतीय कूटनीति को डिजिटल बनाने मे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं| प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारत की समृद्ध “सॉफ्ट पावर” को प्रमुखता से नई ऊंचाइयों तक बढ़ाया है। इस क्षेत्र में उनका विशेष जोर सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों पर रहा है।
कोरोना महामारी फैलने के बाद से वर्तमान विदेश मंत्री श्री जयशंकर की दूसरे देशों में अपने समकक्षों के साथ 65 वर्चुअल राजनयिक व्यस्तता रही है। भारत का डिजिटल रूपांतरण एक अभूतपूर्व तीव्रता के साथ घटित हो रहा है। आज भारत के विदेश मंत्रालय का ऑफिसियल फेसबुक पेज अपने 2.1 मिलियन फॉलोवर्स के साथ अपने “यू.एस समकक्ष” के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर है। गवर्नेंस नाउ पत्रिका द्वारा शुरू की गई गवर्नमेंट 2.0 (ई-गवर्नेंस) का उद्देश्य उन “सरकारी संगठन” अग्रदूतों को पहचानना है जिन्होंने नागरिक सेवा के हेतु सामूहिक मंच बनाने के लिये सोशल मीडिया टूल्स को बढ़ावा दिया है या देते हैं। 2019 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में गठित श्रीकृष्ण कमेटी के सिफारिशों के तहत “डेटा प्रोटेक्शन बिल” पास किया गया था। ये विधेयक साइबर हमले को रोकने, सोशल मीडिया पर नकली समाचारों का समय पर जांच, निगरानी और रोकथाम किये जाने में उपयोगी होगा।
भारत का डिजिटल रूपांतरण एक अभूतपूर्व तीव्रता के साथ घटित हो रहा है। आज भारत के विदेश मंत्रालय का ऑफिसियल फेसबुक पेज अपने 2.1 मिलियन फॉलोवर्स के साथ अपने “यू.एस समकक्ष” के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर है।
हाँ! उदित होते अन्य “सॉफ्ट पावर” की तरह भारत में भी आम जन तक अप्रतिबंधित इंटरनेट की जानकारी और पहुँच लोकतांत्रिक विश्वसनीयता को और मजबूत करेगी| उम्मीद है कि भारत सरकार के द्वारा पिछले कुछ वर्षों मे किए गए अनेक नीतिगत प्रयास आने वाले समय मे भारत को एक “डिजिटल राष्ट्र” बनाने मे सहायक सिद्ध होंगे।
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