हेल्थ डिप्लोमेसी: स्वास्थ्य कूटनीति मे भारत के सफल प्रयास

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भारत स्वास्थ्य कूटनीति के सफल प्रयासों से एक नए नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है |

मुख्य शब्द : कोविड-19 महामारी | हेल्थ डिप्लोमेसी | ब्रांड चाइना | हाइड्रोक्सिक्लोरोक्विन | योग और आयुर्वेद | वैश्विक नेतृत्व 

मौजूदा कोविड-19 महामारी के कारण अब जिस तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा तमाम देशों की प्राथमिकता में मजबूती से शामिल होने वाली है, उसी तरह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। संभव है, आने वाले दिनों में भारत एक नये नेतृत्व की भूमिका में दिखे खास कर “हेल्थ डिप्लोमेसी” के क्षेत्र में। सवाल उठता है कि इस कयास की वजह क्या है?

कोरोना वायरस संकट के दौरान कुछ संकेत तो स्पष्ट दिखे, विश्व की सुपर-पावर कहे जाने वाली अमेरिका की जैविक महामारी से बचने को लेकर उसकी तैयारी धरी की धरी रह गई। वहीं खुद को सुपर-पावर बनाने की होड़ में लगे बीजिंग पर ये प्रश्नचिन्ह लगा है कि क्या वो कोविड-19 की उत्पत्ति और प्रसार को ले कर दुनियां के समक्ष पारदर्शी रहा है? ऊपर से, वायरस की अपनी तथाकथित जंग जीतने के बाद के दौर में दुनियाँ के कई देशों में चीन द्वारा प्रेषित घटिया मेडिकल उपकरणों के कारण विश्व में चीन विश्वसनीयता कम हुई। साथ ही साथ चीन की अंतरराष्ट्रीय सक्रियता भी अक्खड़, आक्रामक और गैर-जिम्मेदाराना रही। कुल मिलाकर, वैश्विक स्तर पर “ब्रांड चाइना” पर बड़ा झटका लगा है।

दूसरी तरफ, जहाँ अधिकांश देश अपने आंतरिक संकट में उलझे हुए थे और उनके लिये वैश्विक सक्रियता प्राथमिकता नहीं थी तब नेतृत्व में उत्पन्न हुई इस रिक्तता को भारत ने भरने का सार्थक प्रयास किया। 

भारत ने कोरोना से लड़ाई और पब्लिक-हेल्थ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में ही भारत ने वुहान में फंसे भारतीय छात्रों को वापस बुला लिया। उसने पड़ोसी देशों के लिये भी ऐसी मदद की पेशकश की। भारत में “हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर” बहुत मजबूत न होने के बावजूद, इस महामारी के दौरान हमारी केंद्र सरकार, राज्य सरकार और अधिकारियों ने जिस तरह से सफलता पूर्वक सामना किया वो दुनिया के लिये नज़ीर बन गई। यूँ तो मेडिसन-डिप्लोमेसी में भारत का इतिहास रहा है और भारत इस मामले में कई अफ्रीकी देशों, दक्षिण-अमेरिकी देशों, सार्क देशों तथा अन्य कई विकाशील देशों की मदद पहले से ही करता आया है पर इस कोरोना संकट के दौरान विश्व भर के पब्लिक-हेल्थ को लेकर भारत की खास सक्रियता देखने को मिली। फिर वो चाहे दवा का वितरण हो, चिकित्सा संबंधी मानव संसाधनों का प्रेषण हो, चिकित्सा संबंधित आपूर्ति में लॉजिस्टिक-मदद हो या फिर जरूरतमंद देशों को दवाइयाँ दान करने की बात हो। अभी तक इन बाबत भारत ने विश्व के 108 देशों की मदद की है जिसमें अमेरिका, रूस, फ्रांस और यू.के जैसे यू.एन सिक्योरिटी कॉउन्सिल के चार स्थाई सदस्य और ऑस्ट्रेलिया, जापान, यू.ए.ई जैसे समृद्ध देश भी शामिल हैं।

भारत ने विश्व के देशों को हाइड्रोक्सिक्लोरोक्विन यानी एचसीक्यू और पारासिटामोल निर्यात कर ‘दुनिया का दवाखाना’ वाली अपनी पदवी के साथ पूरा न्याय किया। ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने भारत की इस सहायता की तुलना “हनुमान जी द्वारा लाये गये संजीवनी बूटी” से कर के भारत की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

भारत ने भारतीय सेना के डॉक्टरों को नेपाल, मालदीव और कुवैत आदि देशों में भेजा ताकि वे वायरस के खिलाफ स्थानीय मुहिम को धार देने में मददगार बनें। भारत लगभग 20 अफ्रीकी देशों को कोविड-19 की दवाइयों के अलावा अन्य दवाइयों से भी मदद करने वाला है जिनमें एन्टी-डायबिटिक, एन्टी-कैंसर, एन्टी-अस्थमैटिक, हृदय-रोग संबंधित दवाइयाँ और थरमामीटर जैसे छोटे मेडिकल-उपकरण शामिल हैं। इसके इतर भारतीय मेडिकल स्टाफ सार्क देशों के स्वास्थ्यकर्मियों को ऑनलाइन प्रशिक्षण के साथ उनकी सहायता में जुटे हैं ताकि वे अपनी क्षमताओं में वृद्धि कर सकें।

इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान भारत का नेतृत्व भी बहुत सक्रिय और सार्थक रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वैश्विक नेतृत्व क्षमता का परिचय जी-20 देशों की बैठक में दिया और कोरोना से जंग को वैश्विक लड़ाई में बदलने का आह्वान किया। इसी तरह, पिछले दिनों दक्षेस के सदस्य देशों के शासनाध्यक्षों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जोड़ने की अच्छी पहल हमारी सरकार ने की। वैश्विक एजेंडा तय करना हो या सर्वाधिक प्रभावित लोगों को वहां से सुरक्षित निकालना या फिर स्वास्थ्य के मोर्चे परअपनी महारत से मदद जुटना, इन सभी में भारत ने अपने पक्ष में वैश्विक दृष्टिकोण बनाने में दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ा है। भारतकी कोशिशों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित दुनिया के दिग्गज नेताओं ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा के मामले में  हम कई देशों से बेहतर हालत में हैं फिर वह स्वास्थ्य कूटनीति, रोकथाम, पता लगाना या स्वास्थ्य के मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने, में से किसी रूप में हो। इन सबके साथ-साथ, ऐसे किसी स्वस्थ-संकट के दौरान सुरक्षात्मक-बचाओ हेतु, भारत, योग और आयुर्वेद जैसे अपने पारंपरिक ज्ञान की महत्ता को वैश्विक स्तर पर समझाने में भी सफल रहा है।उल्लेखनीय ये है कि भारत ने खुद को एक नैतिक, सार्थक और मूल्यवान सख्सियत के रूप में प्रदर्शित किया है। भारत की यही बातें विश्व नज़रिये में भारत को चीन से बेहतर बनाती हैं। इसके व्यापक निहितार्थ हैं।

यही कारण है कि नये वैश्वीकरण में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका की बात दुनिया के अनेक देश करने लगे हैं। 

हाल के वर्षों में भारत विज्ञान & तकनीकी विकास और कूटनीति के लिये एक केंद्र के रूप में उभरा है। भारत, यू.एन.एस.सी के एक अस्थायी सदस्य और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड अध्यक्ष के रूप में भी निर्वाचित हुआ है। 

इन प्लेटफार्मों के माध्यम से, भारत गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों को बढ़ाने और स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिये संस्थागत और द्विपक्षीय कूटनीति के माध्यम से गंभीर प्रयास कर सकता है, जो भारत के स्वास्थ्य कूटनीति के प्रयास में सीधे रूप में पूरक हो सकते हैं। हालांकि इसके लिये भारत को अपने विदेशनीति में विशिष्ट सुधार करने होंगे और अपने “हेल्थ डिप्लोमेसी” को गंभीर वृद्धि देने हेतु उसे अपने “हेल्थ डिप्लोमेसी” को अपने “विज्ञान और तकनीकी” के व्यापक राजनयिक पहल से अलग करना होगा।

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Sanjai Sinha

Sanjai Sinha is a Bihar based freelance writer & columnist

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